दिल्ली में पिछले साल सात दिसंबर को एमसीडी के चुनाव नतीजे आए थे, लेकिन दो महीने बाद भी मेयर नहीं मिल सका है। चुनाव के लिए तीन बार अलग-अलग तारीखें तय की गईं, लेकिन तीनों बार चुनाव हंगामे की भेंट चढ़ गया। अब मामला देश की सर्वोच्च अदालत में पहुंच चुका है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की मेयर उम्मीदवार डॉ. शैली ओबरॉय ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। सुप्रीम कोर्ट ने उपराज्यपाल विनय सक्सेना व अन्य लोगों को नोटिस जारी कर मनोनीत सदस्यों के मताधिकार पर जवाब मांगा है।
दिल्ली एमसीडी चुनाव के नतीजे क्या रहे?
दिल्ली एमसीडी चुनाव चार दिसंबर को हुए थे और वोटों की गिनती सात दिसंबर को हुई। आम आदमी पार्टी चुनावों में एक स्पष्ट विजेता के रूप में उभरी थी, उसने 134 वार्ड जीते और नगर निकाय में भाजपा के 15 साल के शासन को समाप्त कर दिया। भाजपा ने दूसरे स्थान पर रहते हुए 104 वार्ड जीते, जबकि कांग्रेस ने 250 सदस्यीय नगरपालिका सदन में नौ सीटों पर जीत हासिल की थी।
पहली बैठक में मनोनीत पार्षदों को शपथ दिलाने पर हंगामा
चुनाव परिणाम के लगभग महीने भर बाद छह जनवरी को सदन की बैठक हुई। इस दिन नवनिर्वाचित व मनोनीत पार्षदों को शपथ दिलाने के साथ महापौर, उपमहापौर और स्थायी समिति के सदस्यों का चुनाव होने की योजना थी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो सका। बैठक में मनोनीत पार्षदों को शपथ दिलाने के कारण जबरदस्त हंगामा हो गया। इस कारण बैठक में कोई कामकाज नहीं हो सका था।
दूसरी बैठक में पार्षदों ने ली शपथ, लेकिन नहीं हो पाया मेयर चुनाव
पहली बैठक स्थगित होने के बाद नौ जनवरी को मेयर चुनाव की तारीख तय की गई, लेकिन इस बार भी सदन हंगामे की भेंट चढ़ गया और चुनाव टल गए। आम आदमी पार्टी व भाजपा में एमसीडी में पार्षद मनोनीत करने के मामले में चल रहा टकराव दूसरी बार बुलाई गई बैठक में भी जारी रहा। हालांकि, इस दिन नगर निगम के सदन में पार्षदों को शपथ दिलाई गई। आप के पार्षदों के विरोध के बाद भी पहले मनोनीत पार्षदों को शपथ दिलाई गई।
इस बैठक में हुए घटनाक्रमों की बात करें तो आम आदमी पार्टी ने सदन में मीडिया के सामने हेड काउंट कर हाजिरी लगवाई। मेयर चुनाव की मांग को लेकर आम आदमी पार्टी के पार्षद सदन में धरने पर बैठ गए। दूसरी ओर भाजपा की मेयर प्रत्याशी रेखा गुप्ता सदन के बाहर धरने पर बैठ गईं। आप का एक पार्षद निगम सचिव से बात करने के लिए जैसे ही मंच पर चढ़ा, भाजपा के पार्षदों ने इसका जबरदस्त विरोध किया। इसके बाद शोर थमता न देखकर सदन की कार्यवाही को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया।
तीसरी बैठक, आप के दो विधायकों का वोटिंग का अधिकार रद्द
दो असफल कोशिशों के बाद मेयर चुनाव के लिए छह फरवरी तीसरी बार बैठक बुलाई गई। सदन शुरू होते ही हंगामा होने लगा। इसके बाद पहले तो पीठासीन अधिकारी ने 10 मिनट के लिए सदन स्थगित किया, बाद में उन्होंने सदन को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया। दरअसल, कुर्सी पर बैठते ही पीठासीन अधिकारी सत्या शर्मा ने मेयर, डिप्टी मेयर और स्थायी समिति के छह सदस्यों के चुनाव एक साथ कराने की घोषणा की।
साथ ही कहा कि मनोनीत पार्षद (एल्डरमैन) भी मेयर चुनाव में हिस्सा लेंगे और स्थायी समिति के सदस्यों के चुनाव में केवल पार्षद शामिल होंगे। मेयर चुनाव में वोट करने के लिए मनोनीत आप के विधायक महेंद्र गोयल ने तीनों पदों के चुनाव एक साथ कराए जाने पर आपत्ति जताई और कहा कि मेयर चुनाव में एल्डरमैन को वोट देने का हक देना असांविधानिक है। इस पर पीठासीन अधिकारी सत्या शर्मा ने कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट ने 2016 के फैसले में साफ कहा है कि एल्डरमैन मेयर चुनाव में वोट डाल सकते हैं। इसके बाद सदन की कार्यवाही कुछ देर के स्थगित कर दी गई।
थोड़ी देर बाद सदन की कार्यवाही फिर शुरू हुई। तभी पूर्ववर्ती दक्षिणी निगम की स्थायी समिति अध्यक्ष रहीं भाजपा पार्षद शिखा राय ने पीठासीन अधिकारी के सामने यह मांग रखी कि आप के दो विधायक अखिलेश पति त्रिपाठी और संजीव झा को कोर्ट से सजा मिल चुकी है, इसलिए वह मेयर चुनाव में वोट देने के योग्य नहीं हैं। पीठासीन अधिकारी ने इसका समर्थन किया और आप के इन दो विधायकों का वोटिंग का अधिकार रद्द कर दिया। इसको लेकर हंगामा शुरू हो गया। हंगामा बढ़ता देख पीठासीन अधिकारी ने सदन की कार्यवाही को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया।
मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा?
लगातार मेयर चुनाव टलने के विरोध में आप ने फिर से सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया। आप की मेयर प्रत्याशी डॉ शैली ओबेरॉय ने दिल्ली में मेयर का चुनाव कराने के लिए शीर्ष अदालत का रुख किया। हालांकि, जब छह फरवरी को चुनाव की तारीख तय हो गईं, तो याचिका वापस ले ली गई। इसके बाद जब छह फरवरी को भी चुनाव नहीं हो सका तो पार्टी ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। मेयर का चुनाव रोकने को लेकर बीजेपी और आप ने एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए हैं। एल्डरमैन का सदन में वोट डालने की उनकी योग्यता दोनों पार्टियों के बीच असहमति के मुख्य कारण है। आप ने आरोप लगाया कि मनोनीत सदस्यों को मतदान का अधिकार देकर भाजपा उसे मिले जनादेश को लूटने का प्रयास कर रही है।
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