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ममता के लिए चुनौती बने शुभेंदु

बंगाल में सत्ताधारियों का अहंकार पहाड़ की तरह ऊंचा होता जा रहा है। हाल ही में सत्ताधारी तृणमूल समर्थक वकीलों ने कलकत्ता हाईकोर्ट के एक वरिष्ठ जज राजशेखर मंथा की अदालत का बहिष्कार किया था और उत्पात मचाया था। इन वकीलों की न्यायमूर्ति मंथा से नाराजगी इसलिए थी कि उन्होंने विपक्षी नेता शुभेंदु अधिकारी को रक्षा कवच प्रदान किया। न्यायमूर्ति ने शुभेंदु अधिकारी की उस याचिका पर अंतरिम आदेश जारी किया था, जिसमें पुराने मामलों में गिरफ्तारी पर रोक लगाने और नए मामले दर्ज करने के लिए अदालत की अनुमति लेने की शर्त थी। शुभेंदु की याचिका में कहा गया था कि प. बंगाल सरकार और उसकी एजेंसियां उन्हें परेशान करने और छवि बिगाड़ने के इरादे से फर्जी आपराधिक मामले दर्ज करा रही हैं।

वर्ष 2020 में तृणमूल छोड़कर भाजपा में शामिल होते ही शुभेंदु के खिलाफ ममता सरकार बिफर उठी थी। मई, 2021 में विपक्ष का नेता चुने जाने के बाद उनकी वाई श्रेणी की सुरक्षा वापस लेने और दो जुलाई, 2021 को न्यायमूर्ति मंथा के आदेश के बाद सुरक्षा बहाल करने के फैसले से ममता सरकार को पहला झटका लगा था। उसके बाद एक जून, 2021 को कोंटाई थाने में रतनदीप मन्ना नामक एक व्यक्ति से एक मामला दर्ज कराया गया, जिसमें आरोप था कि शुभेंदु अधिकारी और उनके सांसद भाई के निर्देश पर गोदाम से तूफान पीड़ितों के लिए रखे गए तिरपालों की चोरी की गई। सात जुलाई, 2021 को सुवर्णा कांजीलाल चक्रवर्ती नामक एक विधवा ने प्राथमिकी दर्ज कराई कि 13 अक्तूबर, 2018 को उनके पति की हत्या शुभेंदु ने करवाई। वर्ष 2018 में शुभेंदु तृणमूल में ही थे और सुवर्णा के पति सुब्रत चक्रवर्ती उनके अंगरक्षक थे, जिसने पुलिस बैरक में खुद गोली मारकर आत्महत्या कर ली। पूर्व मेदिनीपुर के तत्कालीन एसपी ने भी प्रेस ब्रीफिंग में इसे आत्महत्या बताया था। लेकिन तीन साल बाद इस मामले में सीआईडी ने हत्या का मामला चलाया, जिसे कलकत्ता हाईकोर्ट ने दुर्भावनापूर्ण माना।

अभी हाल में न्यायमूर्ति मंथा के एक और आदेश से जैसे सत्ता का सिंहासन डोल गया। कोयला तस्करी मामले में अदालत ने अभिषेक बनर्जी की साली मेनका को दिए गए रक्षा कवच को हटा लिया। मेनका के पास थाईलैंड की नागरिकता है और मनी लॉन्डरिंग मामले में वह अपनी बहन रुजिरा नरूला के साथ सह आरोपी हैं। खिसियाए सत्ताधारियों की ओर से कुछ लोगों ने आठ जनवरी की रात जज मंथा के घर के बाहर पोस्टर लगाए, जिसमें उन पर पक्षपात करने का आरोप लगाया था। तृणमूल के एक प्रवक्ता ने उनके घर को अवैध तरीके से हासिल किया हुआ बताया था! अगले दिन तृणमूल समर्थक वकीलों ने उनकी अदालत में धक्का-मुक्की की व दूसरे वकीलों को सुनवाई में शामिल होने से रोका। इन वकीलों ने बार एसोसिएशन के पैड पर ‘सर्वसम्मति’ से न्यायमूर्ति मंथा की अदालत का बॉयकाट करने का फरमान जारी कर दिया। उस दिन 500 मामले सुनवाई के लिए सूचीबद्ध थे। न्यायमूर्ति मंथा ने कड़ा रुख अपनाते हुए अदालत की अवमानना का रूल जारी कर दिया।

बंगाल सरकार ने दिखावे के लिए माफी मांग ली, लेकिन तीन फरवरी तक पोस्टर लगाने वालों की गिरफ्तारी नहीं हुई थी। न्यायमूर्ति मंथा की अदालत का बॉयकाट अभी चार दिन पहले ही खत्म हुआ है, लेकिन जजों के खिलाफ तृणमूल नेताओं की बयानबाजी जारी है।  मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कहना था कि दिल्ली बार एसोसिएशन ने किस हक से कोलकाता के मामले में हस्तक्षेप किया। हालांकि राज्य के राज्यपाल और बंगाल के कई सेवानिवृत्त जजों ने वकीलों की करतूत की कड़ी निंदा की है। असल में शुभेंदु अधिकारी की जनसभाओं में उमड़ती भीड़ ने ममता की नींद उड़ा दी है और बंगाल के लोग शुभेंदु में अगले मुख्यमंत्री की छवि देख  रहे हैं।

News Prasar

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