केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भारतीय इतिहास लेखन के गुलामी की मानसिकता से बाहर निकालने की जरूरत बताई। उनके अनुसार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आजादी के अमृतकाल में देश के लिए जरूरी पंच प्रण में अपनी विरासत पर गर्व और गुलामी की निशानियों से मुक्ति को प्रमुखता से रखा है और इतिहास लेखन में इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। अर्थशास्त्री संजीव सान्याल की पुस्तक ‘रिवाल्यूशनरीज’ के विमोचन समारोह को संबोधित करते हुए अमित शाह ने अभी तक भारत के इतिहास को एक ही दृष्टिकोण से थोपे जाने का आरोप लगाया, जिसमें आजादी की लड़ाई में कांग्रेस के नेतृत्व में चले अहिंसक आंदोलन को बहुत बड़ा दिखाया गया और सशस्त्र क्रांतिकारियों के योगदान को अहमियत दी गई। जबकि सच्चाई यह है कि यदि सशस्त्र क्रांति की समानान्तर धारा नहीं होती, तो देश को आजादी मिलने में कई दशक और लग जाते।
आजादी के लिए लाखों लोगों ने दिया था बलिदान
उन्होंने कहा कि आजादी के आंदोलन को भी चरमपंथी और नरमपंथी नजरिये से पेश करने की कोशिश की गई, जबकि इसको वास्तविकतावादी नजरिये से देखने की जरूरत है, जिसमें चरमपंथी और नरमपंथी दोनों का योगदान है। उन्होंने साफ किया कि स्वतंत्रता अनुदान में नहीं मिली है, बल्कि इसके लिए लाखों लोगों ने बलिदान दिया है और कई पीढ़ियां तबाह हुई हैं। आजादी के बाद इसे सही रूप में सामने नहीं रखा गया। उन्होंने कहा कि अब इतिहास की सच्चाई सामने आने लगी है और महापुरुषों को उनका उचित स्थान मिलने लगा है। इस सिलसिले में उन्होंने कर्तव्य पथ पर पिछले साल नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा लगाये जाने का उदाहरण दिया। उन्होंने साफ किया कि नेताजी की किसी से तुलना नहीं की जा सकती है। उनकी देशभक्ति और आजादी की लड़ाई में योगदान आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है।
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