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रविदास जयंती, पढ़िए उनके अनमोल वचन

5 फरवरी को रविदास जयंती मनाई जा रही है । संत रविदास जी का जन्म माघ मास की पूर्णिमा तिथि संवत 1388 को हुआ था। इनके पिता का नाम राहू और माता का नाम करमा था। इनकी पत्नी का नाम लोना बताया जाता हैं इन्हें संत रविदास, गुरु रविदास, रैदास, रूहिदास और रोहिदास जैसे कई नामों से जाना जाता हैं। रविदास जयंती और माघी पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है। संत रविवास जी बेहद धार्मिक स्वभाव के थे।  वे भक्तिकालीन संत और महान समाज सुधारक थे। संत रविदास जी ने भगवान की भक्ति में समर्पित होने के साथ अपने सामाजिक और पारिवारिक कर्त्तव्यों का भी बखूबी निर्वहन किया। इन्होंने लोगों को बिना भेदभाव के आपस में प्रेम करने की शिक्षा दी, और इसी तरह से वे भक्ति के मार्ग पर चलकर संत रविदास कहलाए। उनके उपदेशों और शिक्षाओं से आज भी समाज को मार्गदर्शन मिलता है। आइए जानते हैं संत रविदास के उपदेशों के बारे में।

ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन,
पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीन।।

अर्थ: किसी का पूजन सिर्फ इसीलिए नहीं करना चाहिए क्योंकि वह किसी ऊंचे पद पर है।  इसकी जगह अगर कोई ऐसा व्यक्ति है, जो किसी ऊंचे पद पर तो नहीं है लेकिन बहुत गुणवान है तो उसका पूजन अवश्य करना चाहिए।

मन ही पूजा मन ही धूप,
मन ही सेऊं सहज स्वरूप।।

अर्थ: रविदासजी कहते हैं कि निर्मल मन में ही भगवान वास करते हैं। अगर आपके मन में किसी के प्रति बैर भाव नहीं है, कोई लालच या द्वेष नहीं है तो आपका मन ही भगवान का मंदिर, दीपक और धूप है।
रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच
नकर कूं नीच करि डारी है, ओछे करम की कीच

अर्थ: संत रविदास जी के अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी जाति में जन्म के कारण नीचा या छोटा नहीं होता है। किसी व्यक्ति को निम्न उसके कर्म बनाते हैं। इसलिए हमें सदैव अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए।

करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस
कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास

अर्थ:  हमें हमेशा कर्म में लगे रहना चाहिए और कभी भी कर्म के बदले मिलने वाले फल की आशा नही छोड़नी चाहिए क्योंकि कर्म करना हमारा धर्म है तो फल पाना हमारा सौभाग्य है।

कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा

अर्थ:  राम, कृष्ण,हरि, करीम, राघव सब एक ही परमेश्वर के अलग अलग नाम है ठीक वैसे ही वेद, कुरान, पुराण आदि सभी ग्रंथो में एक ही ईश्वर का गुणगान किया गया है।  इस प्रकार सभी ईश्वर भक्ति के लिए सदाचार का पाठ सिखाते हैं।

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