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अंधविश्वास फैलाने पर क्या कहता है कानून, दोषी के खिलाफ क्या-क्या कार्रवाई हो सकती है?

मध्य प्रदेश के बागेश्वर धाम सरकार धीरेंद्र शास्त्री इस वक्त चर्चा में हैं। शास्त्री पर नागपुर में अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति ने अंधविश्वास फैलाने का आरोप लगाया है। शुक्रवार को धीरेंद्र शास्त्री ने रायपुर में कई मीडियाकर्मियों के सामने चमत्कार करने का दावा किया। एक नेशनल न्यूज चैनल के रिपोर्टर के चाचा का नाम लेकर मंच से बुलाया। अब ये वीडियो भी तेजी से वायरल हो रहा है। धीरेंद्र शास्त्री के अनुयायी इसे चमत्कार मानते हैं। वहीं, शास्त्री के विरोधी कह रहे हैं कि महाराष्ट्र के अंध श्रद्धा उन्मूलन कानून के डर से वह नागपुर से रायपुर चले गए।

ऐसे में सवाल है कि अंध विश्वास फैलाने को लेकर कानून क्या कहता है? अगर कोई इसका दोषी पाया जाता है तो उसे कितनी सजा हो सकती है? दोषी के खिलाफ क्या-क्या कार्रवाई हो सकती है? महाराष्ट्र का अंध श्रद्धा उन्मूलन कानून क्या है? धीरेंद्र शास्त्री से जुड़ा पूरा विवाद क्या है? पहले धीरेंद्र शास्त्री किस तरह के विवादों में घिर चुके हैं? उनके चमत्कार करने के दावे पर विशेषज्ञ क्या कहते हैं? आइये जानते हैं…
अंधविश्वास फैलाने को लेकर कानून क्या है? 
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता चंद्र प्रकाश पांडेय कहते हैं कि ‘भारत में अभी अंधविश्वास को लेकर कोई विशेष केंद्रीय कानून नहीं है। साल 2016 में लोकसभा में डायन-शिकार निवारण विधेयक लाया गया था लेकिन यह पारित नहीं हुआ था। हालांकि, अलग-अलग कानून हैं, जिसके जरिए इसपर रोक लगाने का काम हो सकता है।’
पांडेय आगे कहते हैं, ‘अभी अगर अंधविश्वास के चलते किसी की हत्या होती है तो आरोपी के खिलाफ आईपीसी (भारतीय दंड संहिता) की धारा 302 (हत्या की सजा) के तहत कार्रवाई होती है। इसी तरह धारा 295A ऐसी प्रथाओं को हतोत्साहित करती है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51A (h) में भारतीय नागरिकों के लिये वैज्ञानिक सोच, मानवतावाद और सुधार की भावना को विकसित करना एक मौलिक कर्त्तव्य बनाता है। इसके अलावा अजूबा या दिव्य तरीके से किसी बीमारी के इलाज का दावा करने वालों पर ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट, 1954 के तहत कार्रवाई का प्रावधान है। इसके जरिए भी अंधविश्वास पर रोक लगाने का काम होता है।’
अभी बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, राजस्थान, असम, महाराष्ट्र और कर्नाटक में अंधविश्वास को रोकने के लिए कानून बना है। बिहार पहला राज्य था जिसने जादू-टोना रोकने, एक महिला को डायन के रूप में चिह्नित करने और अत्याचार, अपमान तथा महिलाओं की हत्या को रोकने हेतु कानून बनाया था। इसे ‘द प्रिवेंशन ऑफ विच (डायन) प्रैक्टिस एक्ट’ नाम दिया गया और अक्तूबर 1999 से ये प्रभाव में है, महाराष्ट्र में भी लंबे समय तक चले आंदोलन के बाद इसपर कानून बना। 2013 में महाराष्ट्र मानव बलि और अन्य अमानवीय कृत्य की रोकथाम एवं उन्मूलन अधिनियम पारित किया गया। इसके जरिए राज्य में अमानवीय प्रथाओं तथा काला जादू आदि को प्रतिबंधित किया गया। इस कानून का एक खंड विशेष रूप से ‘godman’ (स्वयं को ईश्वर के समकक्ष मानने वाले) द्वारा किये गए दावों से संबंधित है जो दावा करते हैं कि उनके पास अलौकिक शक्तियां हैं। पं. धीरेंद्र शास्त्री पर इसी कानून के तहत कार्रवाई करने की मांग हो रही है। इसके लिए अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति ने नागपुर पुलिस को एक तहरीर भी दी है।
मनोवैज्ञानिक डॉ. हेमा खन्ना कहती हैं, ‘आस्था अपनी जगह है और अंधविश्वास अपनी जगह। ईश्वर के प्रति आस्था से आप मजबूत होते हैं, लेकिन अगर उनके नाम पर कोई आपको अलौकिक शक्तियों का दावा करे तो उससे दूर रहना चाहिए। बीमारी का इलाज विज्ञान से होता है। इसके लिए इलाज होता है। झाड़ फूंक करने से कोई ठीक नहीं होता है।’ डॉ. खन्ना आगे कहती हैं कि बहुत से बड़े-बड़े बाबा, तांत्रिक, मौलाना, पादरियों के पास पूरी टीम होती है। कई मामलों में वह ऐसी सभाओं में अपने लोगों को बैठा देते हैं और बाद में उन्हीं लोगों पर बाबा, तांत्रिक, मौलाना या पादरी जादू या चमत्कार करने का दावा करते हैं। कई मामलों में वह कुछ लोगों का इतिहास भी पता करवाते हैं और बाद में सभा के दौरान उनके बारे में बताते हैं। कुल मिलाकर ये पूरी तरह से अंधविश्वास होता है। इसका विज्ञान से कोई तालमेल नहीं है। कुछ लोग माइंड रीडिंग का भी काम करते हैं। ये एक तरह का विज्ञान है और इसके जरिए लोग हावभाव से सामने वाले शख्स के अंदर की बात जानने की कोशिश करते हैं।
News Prasar

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